आईपीएम मॉड्यूल्स
धान
धान आधारित फसल प्रणाली में स्थान विशिष्ट आईपीएम मॉड्यूल का वैधीकरण और संवर्धन
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बासमती धान मे आईपीएम मॉड्यूल को 2010-13 के दौरान 40 हेक्टेयर क्षेत्र में ग्राम बम्बावाड, गौतम बुद्ध नगर, उत्तर प्रदेश में मान्य किया गया था।
जिला गौतमबुद्धनगर, यूपी में ग्राम बम्बावाड के आसपास बासमती धान (पूसा बासमती 1121) में मान्य आईपीएम मॉड्यूल को बढ़ावा देने के लिए किसान खेत पाठशाला (एफएफएस) के माध्यम से
किसानों को संगठित करने का प्रयास किया गया; जिसके परिणामस्वरूप 654 किसानों की भागीदारी से 42 गांवों के क्लस्टर में 990.40 हेक्टेयर में इसका क्षैतिज प्रसार हुआ। किसानों के स्व-अभ्यास
वाले खेतो की तुलना में प्रमुख कीटों की घटना/संख्या [पीला तना बेधक (वाईएसबी), पत्ती ल्पेटक (एलएफ) और ब्राउन प्लांट हॉपर (बीपीएच)] और बीमारियाँ [म्यान ब्लाइट, बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट
(बीएलबी) और बाकाने] आईपीएम वाले खेतो में काफी कम रही; आईपीएम के अभ्यासो ने प्राकृतिक शत्रुओ, विशेष रूप से मकड़ियों के संरक्षण के लिए प्रेरित किया, एफपी में 1.76 वयस्क/समहू की तुलना में आईपीएम मे मकड़ियों की संख्या 3.39 वयस्क/समहू दर्ज की गयी। आईपीएम में रसायनो के छिड़काव कम हुए जोकी 0.2 छिडकाव (सक्रिय घटक 28.2 ग्रा./हे.) के मुकाबले एफपी मे रसायनो के छिडकाव की संख्या 2 छिडकाव (सक्रिय घटक 79.87ग्रा./हे.) रही।
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लक्सर, हरिद्वार, उत्तराखंड में 60 हेक्टेयर में बासमती धान में आईपीएम मॉड्यूल को संश्लेषित और मान्य किया गया। लक्सर में, रासायनिक छिडकाव को एफपी में 5.8 छिडकाव (सक्रिय घटक 1870 ग्रा./हे.) की तुलना में आईपीएम मे 2.0 छिड़काव (सक्रिय घटक 347.5 ग्रा./हे.) तक कम किया गया।
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आईपीएम मॉड्यूल के ऑन-फ़ार्म सत्यापन और प्रदर्शन को अर्ध-गहरे पानी के धान के लिये (वर्षाध्न किस्म) और उची भूमि वाला धान 20 हेक्टेयर और 40 हेक्टेयर जो की क्रमशः संतोषपुर, बालासोर, ओडिशा और हरेम हजारीबाग, झारखंड में किया गया।
बासमती धान के लिए आईपीएम मॉड्यूल का किसान सहभागी मोड में बड़े पैमाने पर कार्यान्वयन
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संस्थान द्वारा विकसित आईपीएम मॉड्यूल मैसर्स टिल्डा हैन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के साथ एक परामर्श परियोजना के तहत किसानों के सहभागी मोड में बासमती धान में बड़े पैमाने पर लागू किया गया।
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खरीफ 2019 के दौरान 396 गांवों में 2462 किसानों की भागीदारी से हरियाणा के जींद, कैथल, कुरुक्षेत्र, यमुनानगर और पानीपत जिलों में बासमती धान (पूसा बासमती -1) के 15,623 हेक्टेयर में आईपीएम मॉड्यूल लागू किया गया।
हरियाणा, पंजाब, यूपी और उत्तराखंड में आईपीएम कवरेज: 18000 हेक्टेयर (लगभग)
कपास
मध्य क्षेत्र के लिए बीटी कपास में नाशीजीव प्रबंधन रणनीति का संश्लेषण, सत्यापन और प्रचार (2022-26)
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गुलाबी सुंडी पर प्रमुख जोर देने के साथ कपास आईपीएम का सत्यापन और प्रचार खंडवा (एमपी) के चिचगोहन,
भेरूखेड़ा और बामझार गांवों में 20 हेक्टेयर क्षेत्र में 26 किसान परिवारों के साथ खरीफ 2022 के दौरान किया गया था।
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आई.पी.एम्. 7.82 % में एफ.पी (16.5%) की तुलना में हरे टिंडे की क्षति कम पाया गया और अधिक संख्यां में लाभकारी कीड़ों जैसे मकड़ियों, लेडी बर्ड,
बीटल और हरी लेसविंग पाया गया। आईपीएम क्षेत्रों में बीज कपास की पैदावार भी एफपी (5.80 क्विंटल/हेक्टेयर) की तुलना में (9.25 क्विंटल/हेक्टेयर) अधिक थी।
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कपास में आईपीएम महाराष्ट्र के जालना जिले के जालना और बदनापुर ब्लॉक के 200 गांवो के समूह में 2500 से अधिक किसानों के साथ 3000 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में क्षैतिज रूप से प्रसारित किया गया । गांवों के समूह में आईपीएम को अपनाने से एफपी (17.33 क्विंटल/हेक्टेयर) की तुलना में आईपीएम
क्षेत्र में अधिक उपज (19.50 क्विंटल/हेक्टेयर) हुई, साथ ही एफपी की तुलना में कीटनाशकों के प्रयोग में उल्लेखनीय कमी (>50%) हुई।
भारत के उत्तरी क्षेत्र में कपास में आईपीएम का सत्यापन, शोधन और प्रचार (2021-24)
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कपास में आईपीएम को किसानों की भागीदारी मोड में हरियाणा के रोहतक के बेहनीचंद्रपाल गांव में 100 एकड़ क्षेत्र में खरीफ 2022
के दौरान संश्लेषित और सत्यापन किया गया था।
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(बोल रोट) टिंडा सड़न को प्रमुख जैविक तनाव के रूप में पाया गया। रोग के सफलतापूर्वक प्रबंधन के लिए
स्ट्रेप्टोसाइक्लिन @1 ग्राम + कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% WP @25 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिलाकर
आवश्यकता आधारित छिड़काव किया गया। गुलाबी सुंडी प्रबंधन के लिए SPLAT तकनीक शुरू की गई और सत्यापन किया गया ।
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आईपीएम कार्यान्वयन के परिणामस्वरूप रासायनिक कीटनाशक स्प्रे में 27.6% की कमी आई और एफपी की
तुलना में लाभ-लागत अनुपात में 30.6% की वृद्धि हुई। गांवों के समूह में आईपीएम को अपनाने से एफपी (14.5 क्विंटल/हेक्टेयर) की
तुलना में आईपीएम क्षेत्र में अधिक उपज (18.50 क्विंटल/हेक्टेयर) हुई।
गुलाबी सुंडी पर प्रमुख जोर देते हुए कपास में आईपीएम का विकास, सत्यापन और प्रचार (2018-22)
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(महाराष्ट्र) के वखारी गांव में गुलाबी सुंडी पर प्रमुख जोर देने के साथ कपास आईपीएम का सत्यापन और प्रचार, 83 कृषक परिवारों को 80 हेक्टेयर क्षेत्र में किया गया,
जिसके परिणामस्वरूप एफपी के तुलना में कीटनाशक छिड़काव की संख्या में 49.2% की कमी आई।
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एफपी (2.97) की तुलना में आईपीएम (3.96) में उच्च लाभ लागत अनुपात के साथ बीज कपास की उपज एफपी (15.1 क्विं/हेक्टेयर)
की तुलना में आईपीएम (18.74 क्विं/हेक्टेयर) में काफी अधिक थी।
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जालना जिले के आसपास के 15 गांवों में 2208 हेक्टेयर में कपास आईपीएम का क्षैतिज प्रसार भी किया गया,
जिसके परिणामस्वरूप उपज में काफी वृद्धि हुई और कीटनाशकों के उपयोग में कमी आई।
कपास आधारित फसल प्रणाली में किन्नू उत्पादक क्षेत्र में आईपीएम का सत्यापन और प्रचार (2017-2020)
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कपास आईपीएम तकनीक, 2019 के दौरान उत्तरी क्षेत्र में सफ़ेद मक्खी हॉट स्पॉट में लगभग 120 हेक्टेयर क्षेत्र में किसानों की भागीदारी से सत्यापन किया गया
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आईपीएम के कार्यान्वयन के परिणामस्वरूप एफपी की तुलना में आईपीएम में कीटनाशक अनुप्रयोगों में सक्रिय घटक 87.37% और कीटनाशकों की लागत में 43.58% की कमी आयी।
आईपीएम के कार्यान्वयन से एफपी की तुलना में उच्च लाभ लागत अनुपात के साथ उपज में 43.88% और शुद्ध रिटर्न में 99.92% की वृद्धि हुई।
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आईपीएम के कार्यान्वयन के परिणामस्वरूप एफपी की तुलना में प्राकृतिक शत्रुओं (शिकारियों) की आबादी में 276%
(आईपीएम में 0.79/पौधा और एफपी में 0.21/पौधा) की वृद्धि हुई।
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साप्ताहिक अंतराल पर पोटेशियम नाइट्रेट (एनपीके 13.0.45 @ 2%) के पत्तेदार अनुप्रयोग द्वारा सीएलसीयूडी प्रभावित कपास
के खेतों का सफलतापूर्वक प्रबंधन किया गया और सामान्य बीज कपास की उपज प्राप्त की गई।
दलहन
विभिन्न कृषि पारिस्थितिकीय क्षेत्रों में मटर की फसल सुरक्षा हेतु आई.पी.एम. नीतियों को तैयार करना तथा उनका वैद्यीकरण एवं विस्तारण करना (2022-2025)
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मटर की फसल में कृषि विज्ञान केन्द्र-झाॅंसी एवं जालौन (बा.क्.एवं त.वि.) के संयोग से तथा किसानों की भागीदारी से
कुल 7 गाॅंवों में आई.पी.एम. तकनीकों का वैद्यीकरण तथा विस्तारण लगभग 88 हे. क्षेत्रफल में किया गया। यह कार्यक्रम 4 गाॅंवों बिरगुआ, लाकरा, अमनपुरा तथा बावलतवा (ले.25.43580 न.लो. 81.84630ई.)
कृषि विज्ञान केन्द्र-झाॅंसी के अन्तर्गत एवं अन्य 3 गाॅंवों - कुकरगाॅंव, माड़री तथा नैनपुरा कृषि विज्ञान केन्द्र-जालौन के अन्तर्गत संचालित किया गया।)
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मटर में फली छेदक का प्रकोप आई.पी.एम. क्षेत्र में 0.2र्3ं01-0.7र्4ं0.3 सुन्डी प्रति मी.
पंक्ति जबकि एफ.पी क्षेत्रों में इसका प्रकोप 0.2र्र्7ंं 0.1-1.4र्7ं0.4 सुन्डी प्रति मी. पंक्ति पाया गया।
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तुलनात्मक रूप से रोग का प्रकोप आई.पी.एम. क्षेत्र में एफ.पी. क्षेत्रों की अपेक्षा कम रहा। आई.पी.एम. में
मुर्झा रोग 10.र्0ं3.0 प्रतिषत तथा एफ.पी. में यह 13.र्3ं1.8 प्रतिषत, जबकि पाउडरी मिस्ड्यू आई.पी.एम. में 7.र्3ं2.1 प्रतिषत तथा एफ.पी. में 8.र्8ं3.2
प्रतिषत रहा। इसके अतिरिक्त रतुआ एवं एस्कोकाइटा ब्लाइट रोगों का प्रकोप भी आई.पी.एम. में एफ.पी. की तुलना में कम पाया गया।
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उलब्धि के रूप में 50 प्रतिषत रासायनिक कीटनाषकों की खपत आई.पी.एम. क्षेत्रों में एफ.पी. क्षेत्रों की अपेक्षा कम रही इसके साथ-साथ कुल पैदावार
भी आई.पी.एम. क्षेत्रों में अधिक रही जैसे आई.पी.एम. में लाभ: लागत का अनुपात 3.31ः1 पाया गया जबकि एफ.पी. में यह 2.35:1 रहा।
विभिन्न कृषि पारिस्थितिकीय क्षेत्रों में अरहर की फसल सुरक्षा हेतु आई.पी.एम. नीतियों को तैयार करना तथा उनका वैद्यीकरण करना (2022-2025)
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अरहर की फसल में कृषि विज्ञान केन्द्र कौसाम्भी (उ.प्र.) के संयोग से तथा किसानों की भागीदारी से कुल 5
गाॅंवों (सिरसी, चरवा, सझियापुर, अयोध्यापुर एवं पीपरीश् ले.25.43580 न.लो. 81.84630ई.)
में आई.पी.एम. तकनीकों को तैयार करके उनका वैद्यीकरण करने का कार्य लगभग 32 हे. के क्षेत्रफल में किया गया।
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जिस समय फली छेदक (एच.अर्मीजेरा) का प्रकोप चरम सीमा पर था तब भी आई.पी.एम. (0.4र्5ं0.21 सुन्उी प्रति पौधा) में एफ.पी. (0.6र्1ं0.22 सुन्उी प्रति पौधा) की तुलना में कम ही प्रकोप रहा।
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सामुहिक रूप से सभी फली छेदकों का अधिकतम प्रतिषत प्रकोप भी आई.पी.एम. (15.8र्4ं3.5 प्रतिषत) में एफ.पी. (22.1र्0ं4.3 प्रतिषत) की तुलना में कम ही पाया गया। इसके अतिरिक्त अधिकतम
दानों में क्षति आई.पी.एम. में (13.3र्7ं3.3 प्रतिषत) तथा एफ.पी. में (19.5र्4ं4.6 प्रतिषत) दर्ज की गयी।
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अगस्त तथा सितम्बर के महीनों के दौरान फाइटोफ्थोरा रोग का प्रकोप, आई.पी.एम. एवं एफ.पी. दोनों क्षेत्रों दिखाई दिया परन्तु इसका प्रकोप अपेक्षाकृत
आई.पी.एम. में कम रहा। औसतन मुर्झा रोग का प्रकोप आई.पी.एम. में 14.र्6ं5.2 प्रतिषत तथा एफ.पी. में यह 23.1र्2ं6.2 प्रतिषत पाया गया।
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आई.पी.एम. में लगभग 60 प्रतिषत रासायनिक कीटनाषकों की खपत कम करने की उपलब्धि हाॅंसिल हुई
जिसके परिणाम स्वरूप नाषीजीवियों के प्राकृतिक षत्रु कीटों की संक्ष्या में 45 प्रतिषत की बृद्धि दिखाई दी।
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इस प्रकार आई.पी.एम. क्षेत्रों में एफ.पी. क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक षुद्ध आय पायी गयी।
जैसे आई.पी.एम. में लाभ: लागत का अनुपात 4.8ः1 तथा एफ.पी. में यह 3.6ः1 ही रहा।
मॅंूग एवं उर्द की फसलों हेतु आई.पी.एम. नीतियों को तैयार करना तथा उनका वैद्यीकरण करना - चना, (2020-2022)
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मॅंूग एवं उर्द की फसलों में कृषि विज्ञान केन्द्र-झाॅंसी एवं जालौन (बा.क्.एवं त.वि.) के संयोग से तथा किसानों की भागीदारी से कुल 8 गाॅंवों में आई.पी.एम. तकनीकों का वैद्यीकरण तथा विस्तारण लगभग 240 हे. क्षेत्रफल में किया गया।
यह कार्यक्रम 4 गाॅंवों बिरगुआ, मवई, गाॅंधीनगर, तथा बावलतवा कृषि विज्ञान केन्द्र-झाॅंसी के अन्तर्गत एवं अन्य 4 गाॅंवों - रगौली, रूराअडडू, सतराजू तथा गद्व़गाॅंव कृषि विज्ञान केन्द्र-जालौन के अन्तर्गत संचालित किया गया।
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क्रिया-कलाप जैसे, बुबाई से पहले मृदा में ट्राइकोडर्मा हार्जिनम का प्रचुरीकरण, गोबर की खाद में संवर्धन करके (गोबर की खाद 1.0 कु./हे.) करना,
बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी बीज की प्रजातियों का प्रयोग तथा ट्राइकोडर्मा बिरीडी (सी.एफ.यू. 2ग108) से बीजोपचार करना।
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फसल में पीले/नीले स्टिकी (चिपचिपे) टेªप्स (25/हे.), फीरोमोन टेªप्स (10.12/हे.) एवं सोलर टेªप्स (2.3/हे.) के
प्रयोग से वयस्क कीटों को पकड़कर तथा ज् आकार की लकड़ियाॅं कीट भक्षी चिड़ियों को बैठने तथा कीटों के भक्षण हेतु लगाकर चूषक एवं फली छेदक कीटों का नियऩ्त्रण बिना रासायनिक कीटनाषकों
के छिड़काव से किया जा सका। और इनका छिड़काव सं. मे 7 की 3 पर आ गया तथा प्राकृतिक षत्रु कीटों को भी संरक्षण मिला।
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तुलनात्मक रूप से आई.पी.एम. के अन्तर्गत अधिक लाभ प्राप्त हुआ। आई.पी.एम. उर्द में लाभ: लागत अनुपात 2.06ः1 तथा एफ.पी. में यह अनुपात 1.61ः1 पाया गया।
समान रूप संे मॅंूग में आई.पी.एम. के अन्तर्गत लाभ: लागत अनुपात 2.10ः1 तथा एफ.पी. में यह अनुपात 1.65ः1 प्राप्त हुआ।
विभिन्न कृषि पारिस्थितिकीय क्षेत्रों में प्रमुख दलहनी फसलों हेतु आई.पी.एम. नीतियों को तैयार करना तथा उनका वैद्यीकरण करना - चना, (2018-2022)
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चने की फसल में वर्ष 2018-2022 तक बुन्देलखण्ड (उ.प्र.) के कृषि विज्ञान केन्द्र-झाॅंसी एवं जालौन (बा.क्.एवं त.वि.)
के संयोग से तथा किसानों की भागीदारी से कुल 6 गाॅंवों, तेजपुरा, चोकरी, रगौली, रूराअडडू,
सतराजु एवं गद्व़गाॅंव में आई.पी.एम. तकनीकों का वैद्यीकरण तथा विस्तारण लगभग 692 हे. क्षेत्रफल में किया गया।
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चयनित गाॅंवों के लगभग 70 प्रतिषत किसानों ने फलीक्षेदक के वयस्क कीटों को फीरोमोन टेªप में फसाने हेतु फीरोमोन टेªप (12-15 टेªप/हे.) लगाना प्रारम्भ कर दिया।
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फीरोमोन टेप लगाकर फली क्षेदक का प्रबन्धन प्रभावी तरीके से किया जा सका। वर्ष 2020 के दिसम्बर-फरवरी माह के दौरान औसतन 9र्8ं14,6/मा,मौ.स. में वयस्क कीटों को फीरोमोन ट्रेप
में फसाया जा सका। इसी प्रकार वर्ष 2021-2022 के दौरान औसतन 11र्2ं24.6/मा,मौ.स. के वयस्क कीटों को पकड़ने में सफलता मिली।
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किसान इस नई जानकारी से रूबरू हुए कि यदि फसल में ज् आकार की लकड़ियों को बैठने हेतु लगाई जाये ंतो इन पर
बैठकर चिड़ियाॅं फली छेदक सुन्डियों का भक्षण कर जाती हैं और फसल उत्पादन बिना किसी रासायनिक कीटनाषी के छिड़काव से कि जा सकता है।
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किसानों ने नीम के बीज का निचोड़ (5.0 प्रतिषत) निकालना सीखा तथा इसका कीटनाषी प्रभाव, चने के फली छेदक सुन्उियों के नियन्त्रण हेतु अनुभव किया।
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चने की फसल में यह अनुभव किया गया कि क्रमिक आई.पी.एम. क्रियाकलापों जैसे सूक्ष्मजीवीय घटक-ट्राइकोडर्मा
हार्जिनम, बीटी, तथा एच.ए.एन.पी.वी. आदि का प्रयोग करके रासायनिक कीटनाषकों की खपत को कम किया जा सकता है।
इसके अतिरिक्त पारम्परिक कृषि के तौर पर चने की उत्पादकता आई.पी.एम. पद्वति की तुलना में कम पायी गयी।
पारम्परिक तौर में चने के उत्पादन में लाभ: लागत अनुपात 2.8ः1 रहा जबकि आई.पी.एम. पद्वति यह अनुपात 2.96ः1 प्राप्त हुआ।
तिलहनी फसलें
मूंगफली की फसल में स्थान विशिष्ट व पर्यावरण-अनुकूल आईपीएम प्रौद्योगिकी का संश्लेषण और सत्यापन
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किसान भागीदारी रीति से जूनागढ़, गुजरात और अनंतपुर, आंध्र प्रदेश में मूंगफली की फसल में स्थान विशिष्ट व पर्यावरण-अनुकूल आईपीएम प्रौद्योगिकी का सत्यापन किया गया।
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आंध्र प्रदेश के अनंतपुर में मूंगफली की पैदावार किसान प्रथा में 8.63 क्विंटल/हे. की तुलना में आईपीएम में 9.09 क्विंटल/हे. थी।
राई-सरसों में स्थान विशिष्ट प्राथमिकता वाले घटक-वार आईपीएम पैकेज का सत्यापन और प्रचार (2019-22)
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राजमाता विजयराजे सिंधिया कृषि विश्वविध्यालय (रा.वि.सि.कृ.वि.) - आंचलिक कृषि अनुसंधान केन्द्र, मुरैना (मध्य प्रदेश) में तीन फसल वर्ष (2019/20 से 2021/22) के लिए राई-सरसों में
स्थान-विशिष्ट आईपीएम पैकेज का प्रक्षेत्र सत्यापन परीक्षण आयोजित किया गया।
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ट्राइकोडर्मा एस्पेरेलम (स्थानीय स्ट्रेन) के साथ 2.5 किग्रा/हे. की दर से मृदा संवर्धन + टी. एस्पेरेलम के साथ 10 ग्रा/किग्रा की दर से बीज
उपचार + ताजा तैयार जलीय लहसुन सत का 2% (भार/आयतन) की दर से प्रणीय छिड़काव और जब चेपा की आबादी ईटीएल को पार कर जाए (25 चेपा/10 सेमी केंद्रीय तना), तब नीम तेल
(एजाडिरेक्टिन 300 पीपीएम) का 5 मिली/ली पानी की दर से आवश्यकतानुसार छिड़काव,यह उपचार 29.2 क्विंटल की बीज उपज के साथ सबसे अच्छा पाया गया।
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आईपीएम पैकेज के उपयोग से मित्र कीटों और परागणकों की आबादी में वृद्धि दर्ज की गई, और नियंत्रण की तुलना में बीज की उपज में 25 प्रतिशत
की वृद्धि पाई गई। इससे चेपा की आबादी (71%) घटी और स्क्लेरोटिनिया तना सड़न और चूर्णिल आसिता रोग की गंभीरता में भी काफी कमी आई।
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राई-सरसों में जैव-सघन आईपीएम दृष्टिकोण को रा.वि.सि.कृ.वि. -आंचलिक कृषि अनुसंधान केन्द्र, मुरैना (म.प्र.) के सहयोग से
मुरैना व भिण्ड ज़िलों में एवं आईसीएआर-एनआरआईआईपीएम, नई दिल्ली द्वारा एनसीआर गुरुग्राम, हरियाणा में 2019 से 2022 के
दौरान 41 गांवों के 183 किसानों के सहयोग से 80 हेक्टेयर भूमि पर लोकप्रिय बनाया गया। आईपीएम दृष्टिकोण किसान पद्धति की तुलना में बेहतर पाया गया ।
लाभ-लागत अनुपात आईपीएम में (3.21 से 4.89) किसान पद्धति की तुलना में (2.98 से 4.8) अधिक दर्ज किया गया ।
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कूर्च प्र्रोह = ब्रूमरेप (ओरोबैंकी एजिप्टिका) प्रबंधन प्रथाओं को कृषि जलवायु क्षेत्र 1सी (अति शुष्क आंशिक रूप से सिंचित पश्चिमी मैदानी क्षेत्र),
राजस्थान के लिए संश्लेषित किया गया।
सरसों आधारित फसल प्रणाली में आईपीएम प्रोद्योगिकी का कार्यन्वयन (2017-19)
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वर्ष 2017-19 के दौरान सरसों में आईपीएम के संश्लेषण और सत्यापन के लिए चौधरी चरण हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय - क्षेत्रीय खोज केंद्र,
बावल, रेवाड़ी, हरियाणा और श्री करण नरेन्द्र कृषि विश्वविध्यालय-कृषि विज्ञान केंद्र, नवगॉव, अलवर, राजस्थान में प्रयोग किये गए ।
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वर्ष 2018-19 के दौरान हरियाणा - झज्जर के कबलाना और राजस्थान- अलवर के मोहमदपुर गॉव में 20 हेक्टेयर क्षेत्र में किसानों की भागीदारी के
आधार पर सरसों में मान्य आईपीएम का बड़े पैमाने पर क्रियान्वयन किया गया I सरसों की आईपीएम तकनीक ने किसानों के तरीकों से बेहतर प्रदर्शन किया I
भारतीय सरसों में प्राथमिकता के आधार पर घटक आधारित आईपीएम पैकेज का विकास और सत्यापन (2014-17)
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फसल तनाव को कम करने और बीज की पैदावार एवं आर्थिक लाभ का सही आकलन करने के लिए तीन स्थानों (आईसीएआर-एनआरआईआईपीएम- राजपुर
खुर्द, नई दिल्ली, आईसीएआर-आईएआरआई, नई दिल्ली और श्री करण नरेन्द्र कृषि विश्वविध्यालय - राजस्थान कृषि अनुसन्धान केंद्र, दुर्गापुरा, जयपुर)
पर जैव कारक, वानस्पतिक एवं पीड़कनाशकों से युक्त सरसों आईपीएम पैकेज का मूल्यांकन किया गया I
सरसों आईपीएम पैकेज को आईसीएआर द्वारा आईसीएआर-सीएस- एनआरआईआईपीएम, नई प्रौद्योगिकी-2024-032 के तहत प्रमाणित किया गया I
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मृदा संवर्धन के साथ-साथ ट्राईकोडर्मा स्ट्रेन से बीज उपचार और थाईमथोक्सम कीटनाशक का छिड़काव,
चेंपा और सफ़ेद रतुवा रोग को कम करने और उपज बढ़ाने में बेहतर पाया गया I
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सरसों के लिए घटक-वार आईपीएम पैकेज को मान्य करते समय, लह्सुन के अर्क (2% भार/आयतन)
के साथ बीज उपचार,ज्यादा लाभ के साथ सबसे व्यावहारिक तकनीक साबित हुआ I
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स्क्लेरोटिनिया तना गलन के लिए आईपीएम रणनीति को राजस्थान कृषि विभाग द्वारा राजस्थान के खंड 1 बी
(श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़) और खंड 3 बी (अलवर, भरतपुर, धोलपुर , करौली, खैरतल,
सवाई माधोपुर) की रबी फसलों की सम्रग सिफारिशों में शामिल किया गया हैं और इच्छित उपयोगकर्ताओं द्वारा व्यापक रूप से अपनाया गया हैं I
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सरसों आईपीएम रणनीति को राजस्थान कृषि विभाग द्वारा राजस्थान के खंड 3 ए (जयपुर, अजमेर, और दोसा)
के लिए रबी फसलों की सम्रग सिफारिशों में शामिल किया गया हैं और अब इसे इच्छित उपयोगकर्ताओं द्वारा व्यापक रूप से अपनाया गया हैं I
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आईपीएम सरसों प्रौद्योगिकी को अपनाने में निवेश किये गए प्रत्येक अतिरिक्त रूपये से 5.1 रुपए का लाभ प्राप्त
हुआ, जिसमे इस प्रौद्योगिकी को अपनाने के लिए अच्छा आर्थिक तर्क सामने आया I
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फसल के विकास चरणों के साथ आईपीएम पैकेज का महेन्द्रगढ़ (हरियाणा) एवं अलवर (राजस्थान) में 2014-17 के दौरान 04 गांवों के
100 किसानों के सहयोग से 6080 हेक्टेयर भूमि पर बड़े पैमाने पर सत्यापन किया गया ।
बागवानी की फसलें
बागवानी फसलों में टिकाऊ और अनुकूलनीय आईपीएम प्रौद्योगिकी का सत्यापन और प्रोन्नति
करेला
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महागांव व बसारतपुर गांव, करनाल, हरियाणा में 40 हे. से अधिक व वाराणसी, उत्तर प्रदेश में 12 हेक्टेयर क्षेत्र में करेला में आईपीएम मॉड्यूल का सत्यापन किया गया।
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कर्नल में किसान प्रथा में 8.5 रासायनिक छिडकाव की संख्या की तुलना में आईपीएम में 5.5 रासायनिक छिडकाव की संख्या थी तथा आईपीएम में उपज में 187.4 क्विंटल/हे. की वृद्धि हुई जबकि वाराणशी में रासायनिक छिडकाव की संख्या घट कर 7 हो गई और उपज में 187 क्विंटल/हे. की वृद्धि हुई।
खीरा
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करनाल, हरियाणा के 40 हे. क्षेत्र में खीरे की फसल के लिए आईपीएम तकनीक का विकास व सत्यापन किया गया। रासायनिक छिडकाव की संख्या आईपीएम में 5.0 जेजबकि किसान प्रथा में 12.0 रही तथा फसल की उपज आईपीएम में 252.8
क्विंटल/हे. की तलना में किसान प्रथा में 244.0 क्विंटल/हे. हुई। खीरे में डाउनी मिल्ड्यू के प्रबंधन मेंसाइमोक्सलीन 8% + मैनकोजेब 64% (कर्जेट 72 डब्लूपी) प्रभावी रहा।
लौकी
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करनाल जिले (हरियाणा) में 60 हे. क्षेत्र में लौकी की फसल के लिए आईपीएम तकनीक का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया गया। आईपीएम तकनीक के कार्यान्वयन
से किसानों के खेतों में 220.45 क्विंटल/हे. की तुलना में लौकी की पैदावार 352.16 क्विंटल/हे। तक बढ़ गई। लौकी में आईपीएम लागत-लाभ अनुपात 1:3.87 किसान प्रथा में 1: 2.40 की तुलना में अधिक था।
स्टीकर के साथ नीम तेल 0.15% (1500 पीपीएम) का उपयोग करके लाल कद्दू के बीटल को बहुत अच्छी तरह से प्रबंधित किया गया।
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हरियाणा में 1000 एकड़ से अधिक क्षेत्र में फल मक्खी का समेकित नाशीजीव प्रबंधन सफलतापूर्वक किया गया। फलों की मक्खियों के समेकित
प्रबंधन के लिए बड़े क्षेत्र को अपनाने नमें किसानों द्वारा आईपीएम को अधिक स्वीकार्य और अपनाने योग्य बना दिया जिससे हरियाणा में
आईपीएम प्रौद्योगिकियों के प्रसार और प्रसार में तेजी आई। किसानों के प्रशिक्षण ने कृषक परिवारों के लिए ज्ञान के स्तर में वृद्धि की।
प्याज
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महाराष्ट्र के पुणे में रबी में वडगाँव सहनी और खरीफ में खैरवाड गाँव में प्याज की फसल के लिए आईपीएम तकनीक को 10 हे. क्षेत्र में सत्यापित किया गया। प्याज की आईपीएम तकनीक को करनाल जिले के सिंगोहा-रंभा गाँव में भी सत्यापित किया गया।
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आईपीएम के कार्यान्वयन से रबी और खरीफ के दौरान आईपीएम में 1:1.9 के उच्चतर सीबीआर के साथ रासायनिक कीटनाशक छिडकाव में कमी जो कि 10.0 से घटकर 3.0 हो गई। आईपीएम प्रौद्योगिकी के कार्यान्वयन से उपज में मामूली वृद्धि हुई।
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जैविक प्याज (गैर-रासायनिक) बढ़ने से हरियाणा के करनाल में प्याज के पैदावार में मामूली वृद्धि हुई।
शिमला मिर्च
संतरे के बागों के लिए आईपीएम रणनीतियों का विकास और सत्यापन
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जैवकीटनाशकों और कम जोखिम वाले कीटनाशकों पर आधारित आईपीएम मॉड्यूल; कीटों की स्काउटिंग और निगरानी; कीट प्रबंधन की बेहतर सस्य क्रियाएँ और यांत्रिक तरीकों का पंजकोसी गांव, फाजिलिका, पंजाब और सिटृस रिसर्च स्टेशन, तिनसुकिया, असम में सत्यापन किया गया।
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आईपीएम के कार्यान्वयन से फाजिल्का, पंजाब में फल की पैदावार 272 क्विंटल/हे. और असम के तिनसुकिया में 131.8 किग्रा/वृक्ष बढ़ गयी।
फ़ाइटोफ्थोरा, ग्रीनिंग रोग और रस चूसने वाले कीटों के प्रबंधन पर मुख्यत: ध्यान केंद्रित किया गया था।
संरक्षित खेती और जैव नियंत्रण
नेटवर्क अपप्रोच द्वारा संरक्षित खेती के लिए मल्टी-लोकेशन आईपीएम प्रौद्योगिकी का सत्यापन
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नेटवर्क दृष्टिकोण के माध्यम से संरक्षित खेती प्रणाली के लिए आईपीएम प्रौद्योगिकी का बहु-स्थान संवर्धन। अनुसंधान गतिविधियाँ दो स्थानों पर चल रही हैं
अर्थात् शिमला मिर्च गाँव - मानोली जिला - सोनीपत (हरियाणा) और खीरा गाँव - बसेरी, जिला - जयपुर (राजस्थान)।
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आईपीएम तकनीक खीरे और बेल मिर्च (शिमला मिर्च) की अंकुर मृत्यु
दर को किसान प्रथाओं (एफपी) के तहत क्रमशः 8.3 और 21.6% की तुलना में 1.3 और 6.3% तक कम कर देती है।
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आईपीएम तकनीक एफपी की तुलना में खीरे में रूट-नॉट नेमाटोड, मेलोइडोगाइन इन्कॉग्निटा की
आबादी को 91.1% तक कम कर देती है, जहां 49.4% तक की वृद्धि दर्ज की गई थी।
शिमला मिर्च के मामले में, रूट-नॉट नेमाटोड की आबादी को आर्थिक थ्रेश होल्ड स्तर यानी 1J2/g मिट्टी के तहत रखा गया था।
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एफपी की तुलना में आईपीएम के तहत कीटों (सफेद मक्खी, थ्रिप्स, एफिड्स, माइट्स और कटवर्म) की
आबादी में भी उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई। एफपी की तुलना में खीरे और शिमला मिर्च में आईपीएम के तहत रासायनिक कीटनाशक स्प्रे में क्रमशः 80
और 48.6% की कमी दर्ज की गई। इसी प्रकार डैम्पिंग ऑफ, विल्ट फंगस, फफूंदी,
फल सड़न और लीफ कर्ल मोज़ेक वायरस के कारण होने वाली बीमारी की तीव्रता आईपीएम की तुलना में एफपी में अधिक दर्ज की गई।
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मृदा जनित रोगों के प्रबंधन के लिए कार्बेन्डाजिम (50% डब्लू.पी.) को पूरक बनाया गया।
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गर्मी के महीनों (मई-जून) में 25 माइक्रोन पॉलीइथाइलीन पारदर्शी चादर के साथ मिट्टी का सोलराइजेशन, इसके बाद 800 किलोग्राम/4000 एम2 नीम केक जैव-एजेंटों स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस और ट्राइकोडर्मा हार्ज़िनम) फोरटिफाइड को खेत में डालने के बाद 100% रूट-नॉट नेमाटोड (मेलोइडोगाइन इनकोगनिटा) को कम कर दिया।
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माटर और शिमला मिर्च की अच्छी विपणन योग्य उपज (औसत बिक्री योग्य फलों का वजन 300 ग्राम) प्राप्त किया गया; बड़े आकार के फल के साथ औसतन टमाटर की उपज 9.5 किग्रा/पौधा व और शिमला मिर्च की 3.6 किग्रा/पौधा थी, जबकि खुले खेतों
में छोटे फलों के आकार के साथ टमाटर की उपज 3.3 किग्रा/पौधा व 1.6 शिमला मिर्च की 1.6 किग्रा/पौधा थी। खीरा की औसत उपज 4.2 किग्रा/पौधा दर्ज की गई।
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उपज और लाभ-लागत अनुपात के अनुसार, एफपी की तुलना में खीरे और शिमला मिर्च में क्रमशः 38 और 43% की
वृद्धि दर्ज की गई। आईपीएम के तहत लागत-लाभ अनुपात खीरे और शिमला मिर्च में
क्रमशः 3.74 और 4.50 तक दर्ज किया गया, जबकि एफपी की तुलना में खीरे और शिमला मिर्च में यह क्रमशः 1.96 और 2.7 तक दर्ज किया गया।
विभिन्न कृृषि-जलवायु क्षेत्रों में सूक्ष्म जैव-नियंत्रको का स्थानीय तौर पर बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए प्रौद्योगिकियों का विकास और प्रचार-प्रसार
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सूक्ष्म जैव-नियंत्रण कारकांे का वृह्नद स्तर पर बहुगुणन करने की फ्लेम-सिरिन्ज विधि का अविष्कार किया गया।
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इस विधि का प्रदर्षन एवं ब्याख्यान विभिन्न राज्यों जैसे हरियाना, पंजाब, राजस्थान एवं उत्तर प्रदेष (बुन्देलखण्ड)
के 21 गाॅंवों दिए गये। सभी गाॅंवों में सूक्ष्म जैव-नियंत्रण कारकांे का वृह्नद स्तर पर तैयार करके प्रयोग के सुगम तरीके सुझाए गये।
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इसके साथ-साथ एक अद्वितीय वायोजेल समिश्रण तैयार किया गया जिसमें उच्च सान्द्रण स्तर पर सूक्ष्म जैवीय कोषिकाएं उपलब्ध हो सकेी।
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जैल का समिश्रण को इस प्रकार तैयार किया गया कि इसमें सूक्ष्म जैवीय कोषिकाओं का संरक्षण, अन्य अनैक्षिक जीवों से बचाव तथा संरक्षित कोषिकावों का पोषण हो सके।
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जैल का समिश्रण में ऐसे विषेष पोषक अवयव मिलाए गये हैं कि जिसमें सूक्ष्म जैवीय घटकों को लम्बे समय अर्थात लगभग 20 महीनो तक जीवित रखा जा सके।
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निम्नलिखित सूक्ष्मजीवों का वायोजैल रूप में समिश्रण तैयार करने की सम्पूर्ण विधि-विधान का अविष्कार किया गया है।
उन्नत आईपीएम उपकरण और तकनीकों का विकास और प्रोन्नति
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कीटों के प्रबंधन के लिए आईपीएम गैजेट्स जैसेकी कीट लाइट ट्रप को और परिष्कृत व मानकीकृत किया गया।
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संशोधित कीट प्रकाश जाल का किसान भागीदारी रीति से धान, गन्ना, आम, बेर, टमाटर, चीकू, ज्वार की फसल में विभिन्न जगहों पर प्रदर्शन किया गया।
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आईसीएआर-एनआरआईआईपीएम को आईपीएम गैजेट्स के लिए पांच पेटेंट (तीन राष्ट्रीय और दो अंतर्राष्ट्रीय) दिए गए हैं।
जैव-कीटनाशकों का ऑन-फार्म बड़े पैमाने पर उत्पादन हेतु प्रौद्योगिकियों का विकास और प्रोन्नति
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टी. हर्जियानम के लिए एक विशिष्ट और चयनात्मक माध्यम विकसित किया गया।
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बेसिलस सबटिलिस, बैसिलस थुरिंगिएन्सिस, स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस, एज़ोटोबैक्टर स्पीशीज, राइजोबियम स्पीशीज और एज़ोस्पिरिलम स्पीशीज जैसे विभिन्न जीवाणुओं के द्रव्यमान गुणन के लिए अनाज (आटा) आधारित माध्यम विकसित किया गया।
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ट्राइकोडर्मा स्पीशीज के तरल पदार्थ का छोटे शीशी के रूप में निर्माण किया व बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए मातृ कल्चर प्रदान करने हेतु विभिन्न जीवाडुओं को विकसित किया गया।
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विभिन्न सूक्ष्म जीवों के उच्च घनत्व (2.0 x 10 ^ 12) सीएफयु. के बीओजेल विकसित किए गए।
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छोटे शीशी में टी. हर्ज़ियानम का शेल्फ जीवन 11 महीने तक दर्ज किया गया जो कि 2 x 10 ^ 9 था।
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चौबीस एफएफएस का आयोजन "माइक्रोबियल जैव-एजेंटों के खेत में बड़े पैमाने पर उत्पादन" की प्रक्रिया का प्रदर्शन करने के लिए किया गया और इस प्रकार 46 किसान हमारी तकनीक का उपयोग करके बड़े पैमाने पर जैव-एजेंटों का उत्पादन करने में सक्षम बने। किसानों और गैर सरकारी संगठनों के कार्यकर्ताओं के बीच लगभग 1300 छोटी शीशी वितरित की गयी।